एस०एम०एस० वाराणसी में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का हुआ समापन
सतत विकास लक्ष्य प्राप्तिके लिए भारतीय ज्ञान व्यवस्था पर विद्वानों ने व्यक्त किये विचार
कॉन्फ्रेंस में देश-विदेश से आये लगभग 500 प्रतिभागियों ने प्रस्तुत किये शोध-पत्र
जनसागर टुडे संवाददाता संतोष कुमार सिंह
वाराणसी :- स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज द्वारा आयोजित सतत विकास लक्ष्य प्राप्ति के लिए भारतीय ज्ञान व्यवस्था विषयक ग्यारहवें अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का 3 मार्च रविवार को समापन हुआ | समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित प्रज्ञा प्रवाह पत्रिका के राष्ट्रीय प्रभारी रामाशीष सिंह ने कहा कि ज्ञान, विज्ञान और दर्शन में समस्त मानवता का हित निहित है |
भारत में लगभग 5,000 वर्ष पहले से ही लोकमंगल हितैषी ज्ञान परंपरा है उन्होंने कहा कि ऋग्वेद के ज्ञान सूक्त में उल्लेख है कि प्रारंभिक दशा में पदार्थों के नाम रखे गए | यह ज्ञान का पहला चरण है इनका दोष रहित ज्ञान पदार्थों का गुण,धर्म आदि अनुभूति की गुफा में छुपा रहता है और अंतःप्रेरणा से ही प्रकट होता है काल प्रवाह में यह ज्ञान नष्ट हो गया दरअसल श्रीकृष्ण प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने की बातें कर रहे थे | समापन सत्र में बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित संस्कृत विभाग व बीएचयू स्थित भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने कहा कि सतत विकास की अवधारणा में शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण महत्वपूर्ण हैं | वैदिक युगीन भारत में प्रकृति की पूजा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा प्रो.द्विवेदी ने कहा कि गलोबल वार्मिंग के दौर में आज वैश्विक स्तर पर भारत सम्पूर्ण विश्व के लिए समाधान प्रस्तुत कर रहा है और इन समाधानों का मूल वैदिक साहित्य में निहित है इन सभी ज्ञान की धाराओं में प्रकृति केंद्रित अनुभव को सर्वोपरि रखा गया |
अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो० पी० एन० झा ने प्रो. झा ने नई शिक्षा नीति और भारतीय ज्ञान परम्परा के बीच समन्वय स्थापित करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति में प्राचीन भारतीय ज्ञान के वे सभी अवयव शामिल हैं जो बहुमुखी मानवीय विकास के लिए आवश्यक है उन्होंने कहा कि वैसे तो नई शिक्षा नीति में बहुत से सकारात्मक पहलुओं को सम्मिलित किया गया है लेकिन भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देना इस नीति की सबसे प्रमुख विशेषता है प्रो.झा ने सतत विकास के लिए जीरो हंगर को जरूरी बताया |
दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन के तकनीकी सत्र में जर्मनी से ज्ञान शाखा – भक्ति मार्ग के प्रमुख अध्यापक प्रशिक्षक स्वामी रेवतीकांत ब्रह्म सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन भौतिकता से नहीं बल्कि आत्मिक तत्व से निर्मित है उन्होंने कहा कि प्रेम सेवा है जो स्पष्ट रूप से मां के प्रेम में परिलक्षित होता है |
भारतीय ज्ञान को उद्धृत करते हुए कहा कि धर्म और कर्म में विशेष रूप से कोई खास भेद नहीं है बल्कि जिस भी कर्म के सम्पादन में आनंद की अनुभूति हो वही धर्म है | अन्तरराष्ट्रीय योग गुरु इस्कॉन मुंबई के डॉ. राजेश कुमार मिश्रा ने कहा कि वैदिक ज्ञान ही मुख्य ज्ञान धारा है वास्तव में गुरुकुल व्यवस्था समग्र विकास के लिए ही स्थापित की गयी थी डॉ. मिश्रा ने कहा कि योगाभ्यास से सतत विकास के परिणाम को सहजता से प्राप्त किया जा सकता है |
गौरतलब है कि कान्फ्रेंस के उदघाटन सत्र में कामर्स रिसर्च रिव्यु पत्रिका का विमोचन भी किया गया समापन सत्र का संचालन प्रो.पल्लवी पाठक व धन्यवाद ज्ञापन कॉन्फ्रेंस के समन्वयक प्रो० अविनाश चंद्र सुपकर ने दिया | दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन आठ अलग अलग तकनीकी सत्रों का आयोजन भी हुआ जिसमें देश-विदेश से आये लगभग 500 प्रतिभागियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किया |
इस अवसर एस०एम० एस०, वाराणसी के अधिशासी सचिव डॉ० एम० पी० सिंह, निदेशक प्रो० पी० एन० झा, कुलसचिव संजय गुप्ता, कॉन्फ्रेंस के समन्वयक प्रो० अविनाश चंद्र सुपकर, प्रो० संदीप सिंह, प्रो० राजकुमार सिंह सहित समस्त अध्यापक और कर्मचारी गण उपस्थित रहे ||