तू चल निकला है मंजिल को
तो ठहरी हुई जवानी है,
मोती नहीं है इसके अंदर ,
समुद्र नहीं ये पानी है,
तू ठहर ठहर के चल निकल,
तू लहर लहर के चल निकल,
तू नदियों जैसे बहता चल,
तू मंजिल पर आगे बढ़ता चल,
मुश्किलें पहाड़ों सी खड़ी है,
तेरी हिम्मत उनसे बड़ी है,
सीना तान तू आगे बढ़,
मुश्किलों से हिम्मत से लड़ ,
तू आसमान का तारा बन,
लाखों में एक सितारा बन,
सूरज जैसी तपन है तुझमें ,
तू दुनिया का उजियारा बन,
तू हौसलों से खड़ा हुआ है,
मुश्किलों से लड़ हुआ है,
ये राहें भी छोटी सी है,
तू इनसे पलके ही बड़ा हुआ है
तेरी राहें, ये तेरी मंजिल,
तू इनका लुत्फ उठाता चल,
हर हाल में आगे बढ़,
तू लहर लहर सा बहता चल
तू लहर लहर सा बहता चल।
लेखक व शब्दांश
विवेक कुमार कर्दम