जनसागर टुडे
आजमगढ़ तरवां / सूरज सिंह – रामलीला एक पारंपरिक कला है जिसकी शुरुआत भगवान राम के वनगमन के बाद अयोध्यावासियों द्वारा उनकी बाल लीलाओं का अभिनय करने से हुई मानी जाती है। यह सदियों पुरानी परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों में भक्ति, संस्कृति और आस्था के रूप में जारी है, जिसमें स्थानीय कलाकार विभिन्न पात्रों का मंचन करते हैं और दर्शक भी उत्साहपूर्वक इसमें शामिल होते हैं। आजमगढ़ के तरवां ब्लॉक स्थित नूरपुर ऊर्फ भंवरपुर गाँव मे वर्षो से रामलीला की प्रथा चलती आ रही है | राम लक्ष्मण व सीता जी रूप गाँव के ही ब्राम्हण परिवार से बनाये जाते है | शारदीय नवरात्री के प्रथम दिवस से ही गाँव मे रामायण के सभी लीला गाँव के युवाओं द्वारा प्रतिदिन झांकी के रूप मे दिखाया जाता है | जैसे सीता हरण, लक्ष्मण शक्ति, मेघनाथ वध, आदि अन्य कई झांकी गाँव के युवाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है | नवरात्री के 9 दिन के बाद विजय दशमी पर गाँव के प्राथमिक विद्यालय पर एक बड़े मेला का आयोजन होता है जो की कई वर्षो से चला आ रहा है | मेले मे रावण का एक भव्य पुतला लगाया जाता है और प्रभु श्री राम जी द्वारा रावण वध का भी झांकी प्रस्तुत किया जाता है | विजय दशमी के अगले दिन भी मेला लगता है जिसमे भरत मिलाप के पहले की झांकी प्रस्तुत किया जाता है | बतादे की भंवरपुर के इस मेले मे क्षेत्र के कई गांव से बच्चे, बुजुर्ग, पुरुष, महिला मेले का आनंद लेने आते है | हर साल मंच पर भरत मिलाप का आयोजन होता है जहाँ प्रभु श्री राम माँ जानकी और लक्ष्मण जी, भरत जी शत्रुघ्न जी का मिलाप होता है | उसके बाद बड़े बुजुर्गो के सानिध्य मे गाँव के नवयुवक मंगल दल के युवको द्वारा एक कहानी पर किरदार प्रस्तुत होता है, जिसके देखनें के लिए गाँव की सभी महिला, बेटी, बहु, बच्चे बुजुर्ग, नवयुव ग्राम सभा मे मौजूद रहते है और कार्यक्रम का आनंद लेते है |