**लोकतांत्रिक व्यवस्था में असल विकास किसका हुआ ** भारत को आजादी प्राप्त किए 78 वर्ष हो गए हैं किन्तु इस अन्तराल में वास्तविक विकास किसका हुआ यह ज्ञात करना है? आम आदमी आज आत्मनिर्भर हो पाया है? क्या भारत से भुखमरी, कुपोषण और अशिक्षा खत्म हो पायी है? इसके लिए सरकार और उसकी नीयत और नीति को समझना बहुत जरूरी है। आज आमआदमी और खासआदमी (माननीयों/जनप्रतिनिधियों )के मध्य पारदर्शी नीतियों का होना जरूरी है। संविधान के अनुरूप नीति हों तो किसी को भी आपत्ति नहीं होगी। असमान , अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक नीतियों के चलते देश के अंदर विकास की गति धीमी हो रही है। आज सरकार को इस ओर ठोस एवं प्रभावी कदम उठाने होंगे। आमजन और खासजन के मध्य विश्वास उत्पन्न करना होगा।
जरा सोचिए आज भारत में कुल 4120 एम एल ए और 462 एम एल सी हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक भारत में हैं।
प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। अर्थात 91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये विधायकों पर व्यय होता है। इसी प्रकार भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं।
इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 5 लाख दिया जाता है।अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख रुपए होता है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है।अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है।ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई। इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का खर्च भी लगभग इतना ही है।अर्थात लगभग 30 अरब रूपये विधायकों और सांसदों पर खर्च होता है ।
अब गौर कीजिए इन जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन पर एक अनुमान के मुताबिक –
एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है। 7 पुलिस कर्मियों का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है। इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है। इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते है। Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं। जिन पर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है। इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं। अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम से कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं।
इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है।
यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया से ऊपर हो जायेगा।
अब सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं। प्रश्न है कि इसके विपरीत गरीब लोगों या आम आदमी को क्या मिलता है ? क्या इसकी गरीबी/कुपोषण/भुखमरी दूर हो पायी है ? क्या भारत में रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा सभी भारतीयों को सुलभ हो पायी है?
यदि नहीं तो क्यों नहीं? क्या विकास सिर्फ माननीयों तक ही पहुंच पाया। क्या यही है लोकतंत्र ?
यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला गया होता है।
एक सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ भी बनती है। भारत में दो कानून अवश्य बनना चाहिए-
पहला – चुनाव प्रचार पर होने वाले अनावश्यक खर्च पर प्रतिबंध लगे,नेता केवल टेलीविजन ( टी वी) के माध्यम से प्रचार करें।फ्री की रेवड़ियां बांटने पर रोक लगे। इस संबंध में सुस्पष्ट पारदर्शी कानून बने।दूसरा – नेताओं के वेतन भत्तो पर प्रतिबंध , जनसेवक के रुप में सामान्य खर्च आपूर्ति हेतु सामान्य जेबखर्च दिया जाये।
तब दिखाओ देशभक्ति |
प्रत्येक भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा ? सरकार को इस पर खास कानून बनाने के लिए बाध्य करना होगा। यही नहीं सरकार को संसद जैसी देश के कौने कैंटीन खोल दी जाये
ये संसद भवन जैसी कैन्टीन हर दस किलोमीटर पर खुलवा दीजिये । फिर ये सारे झगड़े ही ख़त्म हो जायेंगे। संसदीय कैंटीन में 29 रूपये में भरपेट खाना मिलेगा। फिर 80% लोगों को घर चलाने का झगड़ा ही ख़त्म हो जायेगा। फिर ना सिलेंडर लाना, ना राशनऔर घर वाली भी खुश । चारों तरफ खुशियाँ ही रहेगी। फिर कोई भूखा नहीं सोएगा, निर्वस्त्र न रहेगा। तब
फिर हम कहेंगे सबका साथ सबका विकास ।
सबसे बड़ा सरकार का फायदा होगा कि 1र् किलो गेहूँ नहीं देना पड़ेगा राशन।
और PM जी को ये ना कहना पड़ेगा कि मिडिल क्लास के लोग अपने हिसाब से घर चलाएँ । सरकार इस पर गौर करें। भारतीय जागरूकता अभियान चलाकर ये जानकारी देश के हर एक नागरिक तक पहुँचाने की कोशिश करे ।
शान है या छलावा…।
पूरे भारत में एक ही जगह ऐसी है जहाँ खाने की चीजें सबसे सस्ती है ।चाय = 1.00
सुप = 5.50,दाल= 1.50
खाना =2.00 ,चपाती =1.00
चिकन= 24.50 डोसा = 4.00
बिरयानी=8.00मच्छली=13.00
ये सब चीज़ें सिर्फ गरीबों के लिए है और ये सब भारतीय संसद की कैंटीन में उपलब्ध है।
और उन गरीबों की पगार है 5,00,000 रूपये महीना वो भी बिना टैक्स के। आज आम आदमी जो 30 या 32 रुपए प्रति दिन कमाने वाला गरीब नहीं है। इस असमानता पूर्ण कानून को खत्म कर, लोक कल्याणकारी आम आदमी के हित में कानून बनाये जाये।
स्वतंत्रता दिवस पर सरकार को यह संकल्प लेना चाहिए कि लोककल्याण के कानून ही बनें।
आम आदमी को इनका समर्थन करना चाहिए। तब वास्तव में दे संविधान के अनुरूप देश आगे बढ़ेगा। विकास करेगा। अभी तक असली विकास माननीयों और सम्माननीयो का ही हुआ है आम नागरिक वास्तविक विकास से आज भी कोसों दूर है। स्वतंत्रता, समता और भ्रातृभाव का संवैधानिक व्यवस्थाओं के अनुसार सरकार और जनता को अमल करना होगा। तब ही आम नागरिक असल स्वतंत्रता आभास कर पायेंगे।
लेखक
सत्य प्रकाश
(प्राचार्य)
डॉ बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़