Thursday, November 27, 2025
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दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षक-शोधार्थियों का आंदोलन सातवें दिन भी जारी : फिर भी प्रशासन मौन

दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षक-शोधार्थियों का आंदोलन सातवें दिन भी जारी : फिर भी प्रशासन मौन ….

नई दिल्ली।
डॉ अनिल कुमार मीणा
सचिव, इंडियन नेशनल टीचर कांग्रेस दिल्ली

दिल्ली/ विश्वविद्यालय के अतिथि शिक्षकों और शोधार्थियों का आंदोलन मंगवार को भी लगातार सातवें दिन जारी रहा। विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर स्थिति कला संकाय के गेट नंबर-4 पर अतिथि शिक्षकों और शोधार्थियों का यह धरना शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है और विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी के कारण इनमें आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बिना टेंट, दरी और पानी के भी आंदोलनकारी अपनी मांग को विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंचाने के लिए डटे हुए हैं। इनमें अधिकांश वे योग्य अभ्यर्थी हैं जो विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों में अध्यापन कर चुके हैं या कर रहे हैं तथा किसी न किसी रूप में विश्वविद्यालय की शैक्षणिक प्रक्रिया और अनुसंधान से जुड़े हैं।
आंदोलनकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी संवैधानिक मांगों को न सिर्फ़ अनदेखा कर रहा है बल्कि उन्हें शांतिपूर्ण प्रदर्शन और बैनर लगाने तक की अनुमति नहीं दी जा रही है। आज महाविद्यालयों से कई शिक्षक धरना स्थल पर आये थे उनका भी इस धरने को पूर्ण समर्थन है। महाविद्यालय के शिक्षको का कहना है कि इन अतिथि शिक्षकों और शोधार्थियों की मांग संविधान सम्मत है और जो मुख्य मांग है कि सहायक प्रोफेसर भर्ती में यूजीसी शिक्षक पात्रता नियम 2018 (कॉलेज कैडर) के अनुसार सभी योग्य अभ्यर्थियों को साक्षात्कार का अवसर दिया जाए उसका हम समर्थन करते है।विश्वविद्यालय प्रशासन ने चलती भर्ती प्रक्रिया में नियुक्ति संबंधित नियम में परिवर्तन करके यहां कार्यरत अतिथि शिक्षकों और शोधार्थियों के साथ धोखा किया है। नयी स्क्रीनिंग गाइडलाइंस में सामाजिक न्याय का तो गला ही घोट दिया है। मौलिक अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है।
आंदोलनकारी यह भी सवाल उठा रहे हैं कि विश्वविद्यालय ने पांच हजार से अधिक नियुक्तियां करने के बाद अचानक क्यों और किस आधार पर योग्य अभ्यर्थियों को साक्षात्कार से बाहर किया है। उनका आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन न तो यह स्पष्ट कर रहा है कि पूर्व में हुई नियुक्तियों में प्रशासन से कौन-सी चूक हुई और न ही यह बता पा रहा है कि चल रही भर्ती प्रक्रिया में नए नियम लागू करने की क्या मजबूरी थी।
शोधार्थियों और अतिथि शिक्षकों का कहना है कि सहायक प्रोफेसर नियुक्ति प्रक्रिया एक संवैधानिक और अत्यंत संवेदनशील प्रक्रिया है जिसमें मनमाने ढंग से बदलना न केवल यूजीसी नियम 2018 की अवहेलना है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के भी खिलाफ है। इसी मुद्दे को लेकर वे कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन को लिखित रूप से अवगत करा चुके हैं।
धरने के सातवें दिन भी विभिन्न महाविद्यालयों से आए बड़ी संख्या में अतिथि शिक्षक और शोधार्थी गेट नंबर-4 पर एकत्र हुए और प्रदर्शन को समर्थन दिया। आंदोलन लगातार मजबूत हो रहा है लेकिन इसके बावजूद अब तक विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई प्रतिनिधि उनसे वार्ता के लिए नहीं पहुंचा है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यदि इसी तरह अनदेखी जारी रही तो यह धरना आगामी दिनों में और उग्र रूप ले सकता है। हम शिक्षक है,प्रशासन हमारे धैर्य की परीक्षा क्यों ले रहा है।हम महाविद्यालय में सभी अकादमिक कार्य करने जाते हैं तो स्थायी नियुक्ति से हमें क्यों वंचित किया जा रहा है। जब हमें यूजीसी, भारत सरकार, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय नियुक्ति हेतु योग्य मानते है ऐसे में विश्वविद्यालय के कुलपति को यह शक्ति कहाँ से और किसके द्वारा प्राप्त हो गयी कि रातो रात एक निर्णय द्वारा 9 हजाई लोगों को साक्षात्कार प्रक्रिया से वंचित कर दिया गया। इस संदर्भ में प्रो. बलराम पाणी का कथन कि “एपीआई यूजीसी निर्धारित करता है और नियुक्ति उसी नियम से होगी” अत्यंत हास्यास्पद है। इंडियन नेशनल टीचर कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश सचिव डॉ अनिल कुमार मीणा ने प्रशासन पर सवाल खड़े किए हैं कि यूजीसी शिक्षक पात्रता नियम 2018 महाविद्यालय कैडर में 40/20 जैसी बैरिकेटिंग,लिखित परीक्षा,प्रस्तुति का प्रावधान किस पेज पर लिखा है। यदि उनके पास प्रमाण है तो मीडिया और प्रदर्शनकारियों को तत्काल उपलब्ध करायें। धरने पर बैठे लोगों से बातचीत में ज्ञात हुआ कि यूजीसी शिक्षक पात्रता नियम 2018 के अनुसार जिन भारतीय नागरिकों का परास्नातक में 55% अंक के.साथ यूजीसी नेट प्रमाण पत्र है वे सभी सहायक प्रोफेसर बनने के योग्य हैं।
यूजीसी का आड़ लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन ना केवल अपनी गलती को छुपाने का प्रयास कर रहा है। आधारहीन नियम से विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। प्रो. पाणी का यह कहना कि ‘एपीआई सिस्टम विश्वविद्यालय नहीं, यूजीसी तय करता है’ पूरी सच्चाई नहीं है। सवाल यह है कि जब जनवरी 2025 से पहले पांच हजार से अधिक नियुक्तियां पुराने एपीआई सिस्टम पर की गईं, तो फिर सिर्फ़ मौजूदा भर्ती प्रक्रिया में अचानक नया नियम लागू करने की जल्दबाज़ी क्यों?

यूजीसी ने कभी यह नहीं कहा कि चलती भर्ती प्रक्रिया में नियम बदले जाएं, न ही यह कहा कि योग्य अभ्यर्थियों को साक्षात्कार से बाहर कर दिया जाए। यह निर्णय विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी का परिणाम है।

यदि एपीआई ‘यूजीसी तय करता है’, तो विश्वविद्यालय बताए कि हजारों नियुक्तियों में एपीआई किस रूप में लागू किया गया था? और अगर पुराने नियम सही थे, तो अब अचानक वही ‘गलत’ कैसे हो गए?

इंटक के चेयरमैन प्रोफेसर पंकज गर्ग ने आंदोलन का समर्थन किया है और कहा है कि सहायक प्रोफेसर भर्ती में सभी योग्य अभ्यर्थियों को यूजीसी 2018 के कॉलेज कैडर नियमों के अनुसार साक्षात्कार का अवसर दिया जाए।

विश्वविद्यालय प्रशासन तथ्य छुपाकर जिम्मेदारी यूजीसी पर नहीं थोप सकता। हम तब तक धरना जारी रखेंगे जब तक पारदर्शी, न्यायसंगत और समान अवसर आधारित भर्ती प्रक्रिया बहाल नहीं की जाती।”

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