730 ग्राम के प्राइमाचीयर बच्चे ने रचाई जिंदगी

गाजियाबाद : मां की ममता, कम्युनिस्ट की लगन और एनआईसीयू की टीम की दिन-रात की मेहनत ने एक नन्ही जान को मौत के मुंह से बाहर निकाल दिया। नवजात शिशु की जान बचकर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि डॉक्टर भगवान ही रूप हैं
गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल के वकीलों और कर्मचारियों ने दिन-रात मेहनत कर 26 सप्ताह के एक प्रमुख बच्चे को नया जीवन दिया है। बच्चे का वजन 730 ग्राम था।

जुड़वाँ बच्चों से स्थित गर्भवती महिला पूनम शुक्ला पत्नी आशुतोष पदिनी गाजियाबाद में रहती हैं और साहिबाबाद के मोहन नगर में नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर में भर्ती के समय उनकी हालत बेहद गंभीर है। एमनियोटिक द्रव्य के समान होने से मां और बच्चों को संक्रमण का खतरा था। लेकिन अस्पताल के कारण, नर्सिंग स्टाफ की मेहनत से नवजात शिशु पूरी तरह से ठीक है और अब 2 दिन बाद अपने माता-पिता के साथ अपने घर जाएगा। नवजात शिशु की माता
पूर्णिमा शुक्ला और फादर आसुतोष पैजेंड ने बताया कि अब हमारे बच्चे का वजन भी काफी कम हो गया है। उन्होंने डॉक्टरों एवं कॉलेज स्टाफ की सहायता ली।
नवजात शिशु का इलाज वृद्ध बाल रोग विशेषज्ञ की व्याख्या में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुंजन वर्मा, एनआईसीयू नवजात शिशु का इलाज, विशाखा, अंशिका, पारुल, शुरुआत, अंजू एवं संदेह ने किया।
नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण ने बताया कि “जुड़वाँ किड्स का सीजेरियन सेक्शन में जन्म हुआ था, और जुड़वाँ किड्स कुमार में से एक को तलाक नहीं दिया जा सका और दूसरा प्राइममेच्योरिटी के 40 के अंदर पैदा हुआ।
यह एक समय से पहले का मामला था और नवजात शिशु को बीमार, हृदय और पेट के विकास के कारण श्वसन और हृदय समर्थन की आवश्यकता थी। उसे गहन गहनता चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में ले जाया गया और वैकल्पिक सहायता दी गई। कुछ घंटों के बाद, बच्चे की हालत ठीक हो गई और उसे उच्च स्वतंत्रता सहायता प्रदान की गई। 45 दिन की मेहनत के बाद अब बच्चे का वजन 730 ग्राम से लेकर 1 किलो 400 ग्राम का हो चुका है भुगतान
नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुंजन वर्मा ने कहा, “जीवन के पहले सप्ताह के नवजात शिशु को स्थिरीकरण के दौरान रक्तचाप, एंटीबायोटिक्स समर्थन की आवश्यकता थी। उनके लिए एंटीकॉन्वेल सेंटर का दौरा शुरू किया गया था। डॉक्टर ने कहा कि बच्चे ने नैदानिक रूप से सुधार दिखाया और 2 दिन बाद धीरे-धीरे हटा दिया गया।
बच्चे को सांस लेने में भारी परेशानी हो रही थी। नवजात के अंतिम संस्कार में सांस लेने की क्षमता न होने के कारण उसे सीपीपी मशीन से निकाल दिया गया। साथ ही कैफीन साइट्रेट, आयनट्रोप सहित अन्य आवश्यक औषधियों के माध्यम से इलाज शुरू किया गया। चार दिन तक सीपीपीपी मशीन पर रहने के बाद बच्ची को केवल 3 दिन तक ऑक्सीजन दी गई। इसी दौरान ट्यूब और सीरिंज की से 2-2 दोस्तों की मदद शुरू हुई। साथ ही मां ने नियमित रूप से कंगारू मदर्स केयर की ट्रेनिंग ली। मां ने हर दो घंटे में बच्चे को गोद में लेकर त्वचा से त्वचा का स्पर्श प्रदान करने के लिए एनआईसीयू की स्थापना की, जिससे बच्चे को मां की देखभाल और सुरक्षा मिली, कर्मचारियों की तरफ से हाथ धोना, ब्रेस्ट तकनीक और मानसिक सहायता में भी मां को लगातार मार्गदर्शन मिला। अब बच्चा बिना ऑक्सीजन के है और पूरी तरह से ठीक है।
माता पिता ने भैंस के कपड़े पहने
बच्चे की माता पूनम शुक्ला ने बताया कि सिर्फ 29 सप्ताह में ही बच्चे का जन्म हुआ था। बच्चा बहुत विकसित था. इसका वजन 730 ग्राम से भी कम था, इस वजह से बच्चे को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर के विशेषज्ञों की मेहनत से बच्चों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है और हमारे बच्चों का वजन भी बढ़ा है। बच्चे के पिता आशुतोष पेनाटोय को भी हॉस्पिटल की पूरी टीम का लीडर और पद नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि आज हमारे बच्चों की नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल के स्टार्स की वजह से नया जीवन मिला है।
900 ग्राम के नवजात शिशु का इलाज है
बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुंजन वर्मा ने बताया कि अभी भी नरेंद्र मोहन अस्पताल में 900 ग्राम का नवजात एनआईसीयू में भर्ती है, जिसका इलाज किया जा रहा है और जल्द ही ये नवजात भी अपने घर पर पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।






