Tuesday, October 14, 2025
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28 सितंबर, विश्व नदी दिवस पर विशेष- नदियों का प्रदूषण दूर करना हमारा कर्तव्य है।

वर्तमान में हमारे देश की नदियों में जल प्रदूषण का विकराल रूप धारण किया है।इसलिए नदियों को प्रदूषण एवं उसके बचाव की समस्या के प्रति जागरूक होना आवश्यक है। नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में विश्व नदी दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी । प्रतिवर्ष सितंबर महीने के चौथे रविवार को नदी दिवस मनाया जाता है। जिसमें प्रदूषण के प्रति चिंतन और प्रदूषण को दूर करने की कार्य योजना पर विचार किया जाता है।
आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीन काल से ही नदियों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश के सभी धार्मिक शहर नदियों के किनारे ही बसे है, साथ ही नदियों के किनारे व्यापार एवं यातायात की सुविधाओं के कारण देश के अधिकांश नगर भी नदियों के किनारे ही विकसित हुए है। देश की अधिकांश जनसंख्या को कृषि कार्य एवं पीने के लिए नदियां ही आज भी जल उपलब्ध करवाती है। फिर भी हमारी नदिया दिनोदिन दूषित होती जा रही है। बढ़ते प्रदूषण की वजह से जलवायु में भी परिवर्तन हुआ है, जिसके कारण भी नदियां सिकुड़ती जा रही है। नदियों के सिकुड़ने का 40 से 50 प्रतिशत हो चुका है।
भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों अमेरिका, पोलैंड, दक्षिणअफ्रीका, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों द्वारा आम जनता में नदियों के संरक्षण की भावना को जागृत करने के लिए विश्व नदी दिवस मनाया जाता है।
नदियों के साथ अब हमें उचित व्यवहार की आवश्यकता है, क्योंकि नदियों के जल को बहुत ही पवित्र माना जाता है। स्पष्ट है कि विश्व प्रसिद्ध महांकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर उज्जैन में 26 दिसंबर, 2022 को भव्य कलश यात्रा के समापन पर देश की 313 पवित्र नदियों के जल से भगवान महाकाल का महाभिषेक किया गया, साथ ही देश भर के 800 जलविदो द्वारा जल संरक्षण के लिए मंथन भी किया गया।
यदि नदियों का संक्षिप्त वर्णन देखें तो देश में सबसे ज्यादा नदिया मध्यप्रदेश के बाद उत्तरप्रदेश में बहती है। वैसे देश में करीबन 400 नदियां हैं, इनकी कुल लंबाई करीब 2 लाख किलोमीटर होगी । इतने में पांच बार धरती का चक्कर लगाया जा सकता है, यह अपने साथ 1869 अरब घन मीटर पानी लेकर चलती है। इतने में पूरा देश 2 फीट पानी में डूब सकता है। यह नदियां 125 करोड लोगों की प्यास बूझाकर देश की सांस्कृतिक धरोहर को पुष्पित पल्लवित करती हैं इसके बावजूद हम उनकी नदियों की रखरखाव अच्छा नहीं कर पा रहे। सिंधु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है। अफ्रीका के नॉर्थ ईस्ट में बहने वाली नील नदी विश्व की सबसे लंबी नदी है, जबकि दक्षिण अमेरिका की अमेज़न नदी विश्व की सबसे बड़ी नदी है। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है जो हिमालय से निकलकर उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश और बिहार से होती हुई, बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। गंगा नदी को शीघ्र प्रदूषण मुक्त करना बहुत आवश्यक है ,क्योंकि अन्य नदियों को साफ रखने के लिए इससे प्रेरणा दी जा सकती है। अधिकांश नदियां प्रदूषित है। दुनिया में कोई भी नदी ऐसी शेष नहीं बची है जो प्रदूषित नहीं है, अगर हमने चिंता ना की तो सभी नदियां अपना अस्तित्व खो देगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की माने तो देश की कुल नदियों में से करीब आदि बुरी तरह प्रदूषित है। कुछ नदियां तो इतनी प्रदूषित है, कि उनका पानी न तो पीने योग्य है, और नहीं अन्य किसी कार्य के लिए उपयुक्त हैं। जन सहयोग के बिना नदियों को प्रदूषण मुक्त किया जाना संभव नहीं है। विदेश में नदियों को पुराने स्वरूप में लाने के लिए बान्ध तोड़े गए । इससे पर्यावरण तेजी से बदलने लगा, यह स्पष्ट है, कि यदि नदियाँ का पानी बचाना और तबाही से बचना तो नदियों को अविरल बहने दे, और उनके मार्ग में कोई निर्माण न करें। राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलती है, बल्कि वे नमक के झीलों में मिलकर रेत में जम जाती है। देश की सबसे छोटी नदी अरवरी नदी राजस्थान में 90 किलोमीटर की सीमा में बहती है। जबकि गंगा नदी 2525 किलोमीटर, गोदावरी नदी 1465 किलोमीटर, ब्रह्मपुत्र नदी 2900 किलोमीटर, नर्मदा नदी 1312 किलोमीटर बहती है। नर्मदा और ताप्ती नदी पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां है। मेघालय की उमंगोत नदी को देश की सबसे साफ नदी का खिताब हासिल है। गंगा को भारत की सबसे लंबी नदी के रूप में माना जाता है एवं वर्ष 2008 में इसे भारत की राष्ट्रीय नदी के रूप में स्वीकार किया गया। बांग्लादेश में नदियों की संख्या सबसे अधिक है। एक सर्वे में 800 नदियों का अध्ययन किया गया, जिसमें 87 % नदिया गर्म हो रही है तो वही 70% नदियों में ऑक्सीजन की कमी होने लगी है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह नतीजा हमें एक बड़ी चेतावनी दे रहा है।
भारत में प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे ज्यादा कर बरपाती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान का कुल 50% केवल बाढ़ से ही होता है। देश के विभिन्न भागों में सुखे और बाढ़ की समस्या से स्थाई रूप से निजात पाने के लिए काफी लंबे समय से नदियों को जोड़ने की परियोजना पर 1980 में केंद्रीय सिंचाई मंत्रालय ने कुल 30 परियोजनाओं को राष्ट्रीय स्वरूप का बताते हुए उन्हें मंजूर किया था, जिनमें 14 हिमालय के क्षेत्र की थी। इस नदी जोड़ परियोजना पर तेजी से काम शुरू तो हुआ, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। अब 42 साल के बाद केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर मोदी सरकार ने काम शुरू किया है।
हमारे देश में जल प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है। नदियों के प्रदूषण एवं उसके बचाव की समस्या के प्रति हमारा जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है। देश में प्रतिवर्ष 8 लाख व्यक्ति जल प्रदूषण के कारण मरते हैं, प्रदूषित नदियों के जल द्वारा सिंचाई करने से फसलों को नुकसान पहुंचता है। इसी जल से सब्जी, फसल, फल खराब होते हैं और इन्हें खाकर हम बीमार होते है। वैसे तो चीन में भी हजारों नदियां लुप्त हो गई है ,उनका चीन में भी 80 से 90 प्रतिशत भूजल और उसका आधा पानी पीने योग्य नहीं है, चीन में भी आधे से अधिक भूजल और एक चौथाई नदी जल इतना प्रदूषित है कि उनका उपयोग उद्योगों या खेती के लिए भी नहीं किया जा सकता।
देश की सबसे पवित्र कहीं जाने वाली गंगा नदी आज की सबसे दूषित नदी बन चुकी है। इस पवित्र नदी में बस्तियों के मल, उद्योगों के अवशिष्ट पदार्थ के साथ शवो को जलाए बिना इसमें बहा दिया जाता है। गंगा नदी के साथ यमुना नदी की भी यही स्थिती बनी हुई है। वास्तव में हमारे देश में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुकी है। सभी स्थानीय निकायों द्वारा आम जनता को जागरूक कर श्रमदान द्वारा नदियों की सफाई प्रति वर्ष अनिवार्य रूप से करना ही चाहिए।
नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न कानून और नियम बनाए हैं। 1987-88 में नदियों के जल की गुणवत्ता की निगरानी हेतु 170 निगरानी केंद्र खोले गए। केंद्र सरकार ने गंगा नदी के सफाई अभियान को प्राथमिकता देकर यह सिद्ध कर दिया है की नदियों का प्रदूषण दूर किया जा सकता है। नदियों में स्नान, शवदाहकर्म, शव विसर्जन, पूजन सामग्री का विसर्जन, मूर्तियों का विसर्जन आदि कार्य जनता के सहयोग से ही रोका जाना संभव है इसे ही नदियों का उद्धार हो पाएगा। दूसरी और मध्य प्रदेश राजस्थान की प्रसिद्ध नदी चंबल भी प्रदूषित हो गई है, इस में मछलियां सहित अन्य जीव जीवन तोड़ रहे हैं, दूसरी ओर इनमें गंदा फैक्ट्री का पानी मिल रहा है, इससे पानी बहुत गंदा हो चुका है। नदी दिवस के अवसर पर हम प्रण करें कि नदियों को स्वस्थ रखेंगे, साफ सुथरा रखेंगे, गंदगी नहीं फेलाएंगे– इसके प्रति हमें जागरूक रहना हमारा कर्तव्य होगा।

डॉ. बी.आर. नलवाया, पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष ,,ओसवाल लोढेसाथ जैन समाज
मंदसौर

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