Thursday, August 14, 2025
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होमराज्यउत्तर प्रदेश*सवाल आम जनमानस के स्वास्थ का...जवाबदार कौन*

*सवाल आम जनमानस के स्वास्थ का…जवाबदार कौन*

*सवाल आम जनमानस के स्वास्थ का…जवाबदार कौन*

*आखिर क्या है निजी अस्पतालों की बाढ़ का काला सच! स्वास्थ प्रशासन आखिर मौन क्यों?*

मानकों की धज्जियां उड़ाते कुकुरमुत्तों की तरह उपज रहे हैं निजी अस्पताल एवं हेल्थ सेंटर

पैथोलॉजी लैब तथा मेडिकल स्टोर्स में अयोग्य तथा नाबालिग स्टाफ कर रहा है मासूमों की जिंदगियों से खिलवाड़

बुलंदशहर जहां एक ओर आम जन मानस में पनप रही सामाजिक चर्चाओं ने *आज के समय में अच्छा स्वास्थ और शिक्षा आम आदमी की पहुंच से दूर हो गई है…*
के रूप में प्रशासनिक व्यवस्थाओं को आईना दिखाने का काम किया है वहीं जनपद के शिकारपुर तथा डिबाई तहसील क्षेत्र के साथ साथ अन्य तहसीलों में भी कुकुरमुत्तों की तरह निजी अस्पताल, हेल्थ सेंटर, चाइल्ड केयर, प्रसूति केंद्र, नेत्र रोग संबंधी सेंटर, अल्ट्रासाउंड सेंटर तथा पैथोलॉजी सेंटर आदि उपज रहे हैं जो कि निश्चित ही चिंता और चर्चा का विषय है। हालांकि ऐसा नहीं है कि समाज में निजी अस्पताल तथा हेल्थ सेंटर आदि नहीं होने चाहिए क्योंकि यदि आपके अपने शहर अथवा गांव में अच्छे तथा भरोसेमंद अस्पताल नहीं होंगे तो आम आदमी को किसी भी सामान्य अथवा गंभीर बीमारी के लिए एनसीआर अथवा मेरठ जैसे शहरों में उपचार हेतु जाना ही पड़ेगा। चाहे उसकी जेब उस महंगे इलाज के लिए उसे सपोर्ट करे या न करे। चाहे उसे वो महंगा इलाज कर्ज लेकर ही क्यों न कराना पड़े। परन्तु इस सबसे इतर बुलंदशहर जनपद की शिकारपुर तथा डिबाई तहसीलों पर जब मीडिया सर्वे किया गया तो प्राप्त जानकारी के अनुसार डिबाई के भीमपुर दोराहे सहित डिबाई नगर तथा नरौरा रामघाट जरगवां क्षेत्र में सभी छोटे बड़े निजी अस्पताल, क्लिनिक, हेल्थ सेंटर, जच्चा बच्चा केंद्र, चाइल्ड केयर अल्ट्रासाउंड तथा पैथोलॉजी सेंटर मिला कर लगभग 200 प्रतिष्ठान देखने को मिले हैं। तो वहीं ऐसी ही कुछ फिगर शिकारपुर तहसील क्षेत्र के नगर एवं पहासू अहमदगढ़ छतारी सलेमपुर आदि देहात क्षेत्रों में भी देखने को मिली है। तो प्रश्न ये उठता है कि इन दोनों तहसील क्षेत्रों में इतने हॉस्पिटल तथा उपरोक्त केंद्रों की सूची सीएमओ कार्यालय में उपलब्ध है।और यदि है तो क्या इन सभी के द्वारा उन सरकारी मानकों का अनुसरण किया जा रहा है जो किसी भी वैध चिकित्सीय संस्थान के लिए आवश्यक होते हैं। इस सवाल का जवाब दुर्भाग्यवश किसी के पास नहीं है। क्योंकि जब भी इस विषय पर तहसील स्तरीय संबंधित विभाग के अधिकारी से बात की जाए तो उनका सीधा सा जवाब होता है कि इस विषय पर जानकारी देने के लिए हम अधिकृत नहीं है। और वहीं जब इस विषय पर जिला स्तरीय अधिकारियों से बात की जाए तो वो समयाभाव का बहना बना कर कुछ भी कहने से साफ मुंह चुराते हुए नजर आते हैं। प्रश्न फिर वही कि उन माफियाओं पर लगाम कसने के लिए आखिर कौन आगे बढ़ेगा जिन्होंने कोरोना काल अचानक स्वास्थ संबंधी दुकानें खोल कर अपने आप को पहले स्थापित किया और अब देखते देखते चंद वर्षों में न सिर्फ करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन गए बल्कि आज तक उनके इन अवैध जीवन खिलवाड़ केंद्रों पर मानकों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस सब में मजे की बात ये है कि इनमें से कुछ तो ऐसे जल्लाद हैं जो किसी भी मासूम का हीमोग्लोबिन 5-6 प्वाइंट होने पर भी सिजेरियन कर डालते हैं और इस स्थिति में प्रसूता की मृत्यु हो जाने पर मरीज के तीमारदारों द्वारा हंगामा काटने पर लाख या 50 हजार रुपए दे कर उसका मुंह बंद कर देते है और फिर स्थानीय पुलिस से लेकर जिला स्तरीय अधिकारियों को भी मैनेज कर लिया जाता है। इसका जीता जगता प्रमाण ये है कि जो अस्पताल अथवा मानव जीवन खिलवाड़ केंद्र अचानक विभागीय अधिकारियों द्वारा सील किया जाता है वो केंद्र महज 24 अथवा ज्यादा से ज्यादा 48 घंटे में स्वतः ही खुल जाता है। इसका जवाब आज तक किसी अधिकारी द्वारा किसी एक मीडियाकर्मी को दिया ही नहीं गया। आखिर क्यों! ज्ञात हो कि कुछ केंद्र तो तहसील क्षेत्र डिबाई में ऐसे लोगों द्वारा संचालित हैं जिनकी पढ़ाई महज हाईस्कूल है और कुछ ऐसे लोगों द्वारा संचालित हैं जो अवैध रूप से किए गए सिजेरियन के अपराध में जेल तक जा चुके हैं। आखिर कैसे उन संबंधित अधिकारियों की आंख का पानी सूख जाता है जो देश के संविधान की शपथ लेते हुए ये कसम खाते हैं कि अपनी पूर्ण निष्ठा और सेवा भाव से जनमानस की सेवा करेंगे। जिनको सामाजिक विधान के अनुसार पृथ्वी पर भगवान का रूप कहा जाता है आखिर कैसे वो चंद रुपयों के लालच में सड़क से गुजरते हुए सब कुछ देखते और जानते हुए अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। चाहे कोई गरीब किसी स्वास्थ माफिया के चंगुल का शिकार हो जाए या किसी का परिवार ही क्यों न उजड़ जाए… किसी को कोई मतलब नहीं… रही बात सरकार की है तो जब कोई खबर या शिकायत सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ अथवा डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक तक पहुंचेगी तभी तो कोई कार्यवाही संभव होगी लेकिन न तो कोई इसकी शिकायत ऊपर करता है और न किसी के कहने की कोई सुनवाई नहीं होती है।

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