*शिक्षा क्या है?*
डॉ अजय कुमार
शिक्षा से समझ पैदा होती है
समझ हो तो आप समाज के लिए
एक बेहतर इंसान साबित होते हैं
दूसरे शब्दों में कहूँ तो
अगर आपकी शिक्षा
समाज के उत्थान में
उपयोगी साबित न हो पाए
तो आप कितनी भी डिग्रियां
क्यों न हासिल कर लें
आप शिक्षित नहीं हैं!
लेकिन
आपके आसपास
या आपके राष्ट्र में
यदि एक भी आंख में पानी है
बर्बाद कोई जवानी है
किसी बच्ची से बालात्कार होता है
कोई बच्चा जुल्म का शिकार होता है
और आपको
इन बातों से कोई फर्क ही नही पड़ता
तो आपने
शिक्षा के नाम पर
सिर्फ वक्त बर्बाद किया है!
आपके आसपास
या आपके राष्ट्र मे
किसी का शोषण कोई कर जाता है
इलाज के बिना कोई मर जाता है
कोई औरत आजादी के लिए तरसती है
कोई मजबूरी में अपना जिस्म बेचती है
और आप
इन बातों को जानते हुए भी
इन समस्याओं के समाधान की खातिर
कुछ कर नहीं पाते हैं
तो समझिए
आपने स्कूल जाकर
बड़ी भूल की है!
आपके आसपास
या आपके राष्ट्र मे
कहीं घृणा या उन्माद होता है
कहीं दंगा या फसाद होता है
कहीं चूड़ियां बिखरती हैं
कहीं बस्तियां उजड़ती हैं
लेकिन
आप कहते हैं
जाने दो मुझे क्या ?
तो समझिए
जो शिक्षा आपने हासिल की है
उड़में भारी दोष है!
आपके आसपास
या आपके राष्ट्र में
नफरतों की खेती हो रही है
और आप इस खेती से निकले
जहर को
अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए
बेहतर समझते हैं तो
आपकी शिक्षा
विष के समान है!
आपके आसपास
या आपके राष्ट्र में
सड़कों पर
आवारा पशुओं से भी
बदतर हालात में
मासूम बच्चे भटकते हैं
इसे आप
उन बच्चों की तकदीर समझ
निकल लेते हैं
तनिक भी रुककर
सोचते नहीं
की आखिर इन बच्चों की
इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है ?
तो समझिए
आपकी शिक्षा बेमानी है!
भूख गरीबी और अन्याय
पर आपका मौन
यह साबित करता है कि आप
डिग्रीधारी होने के बावजूद
शिक्षा से वंचित हैं
आप राजनीति की
चालों को नहीं समझ पातें हैं
और मीडिया की बनाई
कहानियों को सच मान लेते हैं
तो आपकी शिक्षा
अभी अधूरी है!
आप धर्म के नाम पर
दंगाई भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं
या फेक न्यूज़ के आधार पर
किसी को शत्रु और
किसी को हीरो मान लेते हैं
तो अभी आप
शिक्षा से कोसों दूर हैं!
आप धर्म की
युगों पुरानी धारणाओं पर
यकीन करते हैं
और
धर्म की
सड़ चुकी मान्यताओं को
सन्देह से परे समझते हैं
तो समझिए कि
आपने शिक्षा के नाम पर
कूड़ा इकट्ठा कर लिया है!
आप किसी भी तरह की हिंसा को
अपनी कुंठाओं की सीमाओं
के भीतर से देखते हैं
और इन घटनाओं का विरोध
करने की बजाय
हर बार
चुप्पी की चादर में छुप कर
खुद को
अदृश्य कर लेते हैं
तो समझिए
आपकी शिक्षा
पूरी तरह निरर्थक साबित हुई है!
रंग, जाति, क्षेत्र, भाषा, दौलत
या लिंग के आधार पर
आप खुद को श्रेष्ठ या
किसी को नीच समझते हैं
तो समझिए आपकी शिक्षा
समाज के लिए अभिशाप है!
डिग्रियों के ढेर पर बैठ कर
आप खुद को
शिक्षित समझने की भूल न करें!
मैं समझता हूँ
यदि आपकी डिग्रियों
के वजन से
आपके अंदर की
संवेदनाएं दम तोड़ गईं हैं
तो अभी आप
इंसान बनने की प्रक्रिया से ही
काफी दूर खड़े हैं!
लेखक
डॉ अजय कुमार